तुलसीदास का जीवन परिचय: Tulsidas Ka Jivan Prichay (Biography of Tulsidas)…

Hello दोस्तों आज हम Tulsidas Ka Jivan Prichay का जीवन परिचय और इनके रचनाओं को देखेंगे | (Jivan Prichay of Tulsidas Ji)

“तुलसी दास एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रतिभा थे, जो युगों के बाद एक बार आया करते है तथा ज्ञान, भाव-विभाव अनेक तत्त्वों का समाहार होती है | इनकी प्रतिभा इतनी विराट थी कि उसने भारतीय संस्कृति की सारी विराटता को आत्मसात कर लिया था |

Tulsidas Ka Jivan Prichay
नाम गोस्वामी तुलसीदास
जन्म
1532 ई.
जन्म स्थान
राजापुर गाँव
पिता का नाम
आत्माराम दुबे
माता का नाम
हुलसी
पत्नी का नाम
रत्नावली
मृत्यु
1623 ई.
मृत्यु का स्थान
काशी

जीवन परिचय-

लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास भारत के ही नहीं, सम्पूर्ण मानवता तथा संसार के कवि हैं। उनके जन्म से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। इनका जन्म 1532 ई. (भाद्रपद, शुक्ल पक्ष एकादशी, विक्रम संवत् 1589 स्वीकार किया गया है। तुलसीदास जी के जन्म और जन्म स्थान के सम्बन्ध को लेकर सभी विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। इनके जन्म के सम्बन्ध में एक दोहा प्रचलित है।

“पंद्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर । श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्यो सरीर॥”

‘तुलसीदास’ का जन्म बाँदा जिले के ‘राजापुर’ गाँव में माना जाता है। कुछ विद्वान् इनका जन्म स्थल एटा जिले के ‘सोरो’ नामक स्थान को मानते हैं। तुलसीदास जी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि अभुक्त मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। इनका बचपन अनेक कष्टों के बीच व्यतीत हुआ। इनका पालन-पोषण प्रसिद्ध सन्त नरहरिदास ने किया और इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की। इनका विवाह पण्डित दीनबन्धु पाठक की पत्त्नी रत्नावली से हुआ था।

इन्हें अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम था और उनके सौन्दर्य रूप के प्रति वे अत्यन्त आसक्त थे। एक बार इनकी पत्नी बिना बताए मायके चली गईं तब ये भी अर्द्धरात्रि में आँधी-तूफान का सामना करते हुए उनके पीछे-पीछे ससुराल जा पहुँचे। इस पर इनकी पत्नी ने उनकी भर्त्सना करते हुए कहा “लाज न आयी आपको दौरे आयेहु साथ। ” पत्नी की इस फटकार ने तुलसीदास जी को सांसारिक मोह-माया से विरक्त कर दिया और उनके हृदय में श्रीराम के प्रति भक्ति भाव जाग्रत हो उठा। तुलसीदास जी ने अनेक तीर्थों का भ्रमण किया और ये राम के अनन्य भक्त बन गए। इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। 1574 ई. में इन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ की रचना की तथा मानव जीवन के सभी उच्चादर्शों का समावेश करके इन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया। 1623 ई. में काशी में इनका निधन हो गया।

रचनाएँ- गीतावली , दोहावली, कवितावली, विनयपत्रिका, रामचरितमानस, जानकी- मंगल

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